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Information
Old NCERT is important for UPSC exam preparation. Aspirants should always start their UPSC Civil Services preparation from the basic NCERT books.
Mostly IAS toppers told that NCERT is the foundation of their exam preparation.NCERT are very important from prelims perspective.
We are Providing NCERT based quiz for your preparation. In this quiz, There will have 5 questions in each quiz. The questions are mainly framed from old NCERT class 6 to 12. This quiz is intended to introduce you to basic concepts and certain relevant to UPSC IAS civil services preliminary exam.
Hope this test will help to increase your preparation level.
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Question 1 of 5
1. Question
2 pointsविष्णु के वराह रूप की मूर्ति निम्नलिखित में से कहाँ से प्राप्त हुई है?
Correct
उत्तरः (b)
व्याख्याः विष्णु के वराह रूप की मूर्ति एरण, मध्य प्रदेश से प्राप्त हुई है। पुराणों के अनुसार जल में डूबी पृथ्वी को बचाने के लिये विष्णु ने वराह रूप धारण किया था। यहाँ पृथ्वी को एक स्त्री के रूप में दर्शाया गया है।Incorrect
उत्तरः (b)
व्याख्याः विष्णु के वराह रूप की मूर्ति एरण, मध्य प्रदेश से प्राप्त हुई है। पुराणों के अनुसार जल में डूबी पृथ्वी को बचाने के लिये विष्णु ने वराह रूप धारण किया था। यहाँ पृथ्वी को एक स्त्री के रूप में दर्शाया गया है। -
Question 2 of 5
2. Question
2 pointsभक्ति परम्परा के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है?
Correct
उत्तरः (c)
व्याख्याःदेवी-देवताओं की पूजा का चलन मौर्योत्तर काल से शुरू हुआ। इनमें शिव, विष्णु और दुर्गा जैसी देवी-देवता शामिल हैं। इन देवी-देवताओं की पूजा भक्ति परम्परा के माध्यम से की जाती थी। किसी देवी-देवता के प्रति श्रद्धा को ही भक्ति कहा जाता है।
भक्ति मार्ग की चर्चा हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथ भगवद्गीता में की गई है। भक्ति मार्ग अपनाने वाले लोग आडंबर के साथ पूजा-पाठ करने के बजाए ईश्वर के प्रति लगन और व्यक्तिगत पूजा पर ज़ोर देते थे। अतः कथन (c) गलत है।
भक्ति मार्ग अपनाने वालों का मानना था कि अगर आराध्य की सच्चे मन से पूजा की जाए तो वह उसी रूप में दर्शन देगें, जिसमें भक्त उसे देखना चाहता है। अतः इस विचार की स्वीकृति बढ़ने के साथ कलाकार, देवी-देवताओं की एक से बढ़कर एक खूबसूरत मूर्तियाँ बनाने लगे। भक्ति मार्ग के बढ़ते प्रभाव के काल में ही दक्षिण भारत में लगभग 1400 साल पहले एक शिव भक्त अप्पार ने तमिल में शिवस्तुति की रचना की थी। ये शिवभक्त अप्पार एक बड़ा भूस्वामी (वेल्लाल) था।Incorrect
उत्तरः (c)
व्याख्याःदेवी-देवताओं की पूजा का चलन मौर्योत्तर काल से शुरू हुआ। इनमें शिव, विष्णु और दुर्गा जैसी देवी-देवता शामिल हैं। इन देवी-देवताओं की पूजा भक्ति परम्परा के माध्यम से की जाती थी। किसी देवी-देवता के प्रति श्रद्धा को ही भक्ति कहा जाता है।
भक्ति मार्ग की चर्चा हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथ भगवद्गीता में की गई है। भक्ति मार्ग अपनाने वाले लोग आडंबर के साथ पूजा-पाठ करने के बजाए ईश्वर के प्रति लगन और व्यक्तिगत पूजा पर ज़ोर देते थे। अतः कथन (c) गलत है।
भक्ति मार्ग अपनाने वालों का मानना था कि अगर आराध्य की सच्चे मन से पूजा की जाए तो वह उसी रूप में दर्शन देगें, जिसमें भक्त उसे देखना चाहता है। अतः इस विचार की स्वीकृति बढ़ने के साथ कलाकार, देवी-देवताओं की एक से बढ़कर एक खूबसूरत मूर्तियाँ बनाने लगे। भक्ति मार्ग के बढ़ते प्रभाव के काल में ही दक्षिण भारत में लगभग 1400 साल पहले एक शिव भक्त अप्पार ने तमिल में शिवस्तुति की रचना की थी। ये शिवभक्त अप्पार एक बड़ा भूस्वामी (वेल्लाल) था। -
Question 3 of 5
3. Question
2 pointsकथन (A): केरल के ईसाइयों को ‘सीरियाई ईसाई’ कहा जाता है।
कारण (R): केरल के ईसाई सम्भवतः पश्चिम एशिया से आए थे।
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर का चयन कीजिये-Correct
उत्तरः (a)
व्याख्याःलगभग 2000 वर्ष पूर्व पश्चिमी एशिया में ईसाई धर्म का उदय हुआ। ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह का जन्म बेथलेहम में हुआ जो रोमन साम्राज्य का हिस्सा था। उन्होंने स्वयं को इस संसार का उद्धारक बताया।
ईसा मसीह के उपदेश धीरे-धीरे पश्चिमी एशिया, अफ्रीका तथा यूरोप में फैल गए। ईसा मसीह की मृत्यु के सौ सालों के अंदर ही भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर पहले ईसाई धर्म प्रचारक, पश्चिमी एशिया से आए।
केरल के ईसाइयों को ‘सीरियाई ईसाई’ कहा जाता है क्योंकि संभवतः वे पश्चिम एशिया से आए थे, वे विश्व के सबसे पुराने ईसाइयों में से हैं। अतः विकल्प (a) है।Incorrect
उत्तरः (a)
व्याख्याःलगभग 2000 वर्ष पूर्व पश्चिमी एशिया में ईसाई धर्म का उदय हुआ। ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह का जन्म बेथलेहम में हुआ जो रोमन साम्राज्य का हिस्सा था। उन्होंने स्वयं को इस संसार का उद्धारक बताया।
ईसा मसीह के उपदेश धीरे-धीरे पश्चिमी एशिया, अफ्रीका तथा यूरोप में फैल गए। ईसा मसीह की मृत्यु के सौ सालों के अंदर ही भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर पहले ईसाई धर्म प्रचारक, पश्चिमी एशिया से आए।
केरल के ईसाइयों को ‘सीरियाई ईसाई’ कहा जाता है क्योंकि संभवतः वे पश्चिम एशिया से आए थे, वे विश्व के सबसे पुराने ईसाइयों में से हैं। अतः विकल्प (a) है। -
Question 4 of 5
4. Question
2 pointsहरिषेण निम्नलिखित में से किसका दरबारी कवि था?
Correct
उत्तरः (b)
व्याख्याः हरिषेण समुद्रगुप्त का दरबारी कवि था।Incorrect
उत्तरः (b)
व्याख्याः हरिषेण समुद्रगुप्त का दरबारी कवि था। -
Question 5 of 5
5. Question
2 pointsइलाहाबाद का अशोक स्तम्भ अभिलेख निम्नलिखित में से किसके काल के बारे में सूचना प्रदान करता है?
Correct
उत्तरः (d)
व्याख्याःइलाहाबाद का अशोक स्तम्भ अभिलेख समुद्रगुप्त के शासन के बारे में जानकारी देता है। इस पर समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण ने संस्कृत भाषा में प्रशंसनात्मक वर्णन प्रस्तुत किया है। इसे लगभग 1700 वर्ष पूर्व लिखा गया था। इसे ही प्रयाग-प्रशस्ति या समुद्रगुप्त की प्रशस्ति कहा गया है। प्रशस्ति का अर्थ ‘प्रशंसा’ होता है। इसमें उसकी विजयों का वर्णन है। इसमें उसे ईश्वर के बराबर बताया गया है। इसमें समुद्रगुप्त की योद्धा और उत्कृष्ट कवि के रूप में भी प्रशंसा की गई है।
समुद्रगुप्त एक संगीत प्रेमी राजा था वह वीणा भी बजाता था। उसके इस गुण को सिक्कों पर भी दिखाया गया है।Incorrect
उत्तरः (d)
व्याख्याःइलाहाबाद का अशोक स्तम्भ अभिलेख समुद्रगुप्त के शासन के बारे में जानकारी देता है। इस पर समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण ने संस्कृत भाषा में प्रशंसनात्मक वर्णन प्रस्तुत किया है। इसे लगभग 1700 वर्ष पूर्व लिखा गया था। इसे ही प्रयाग-प्रशस्ति या समुद्रगुप्त की प्रशस्ति कहा गया है। प्रशस्ति का अर्थ ‘प्रशंसा’ होता है। इसमें उसकी विजयों का वर्णन है। इसमें उसे ईश्वर के बराबर बताया गया है। इसमें समुद्रगुप्त की योद्धा और उत्कृष्ट कवि के रूप में भी प्रशंसा की गई है।
समुद्रगुप्त एक संगीत प्रेमी राजा था वह वीणा भी बजाता था। उसके इस गुण को सिक्कों पर भी दिखाया गया है।