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Old NCERT is important for UPSC exam preparation. Aspirants should always start their UPSC Civil Services preparation from the basic NCERT books.
Mostly IAS toppers told that NCERT is the foundation of their exam preparation.NCERT are very important from prelims perspective.
We are Providing NCERT based quiz for your preparation. In this quiz, There will have 5 questions in each quiz. The questions are mainly framed from old NCERT class 6 to 12. This quiz is intended to introduce you to basic concepts and certain relevant to UPSC IAS civil services preliminary exam.
Hope this test will help to increase your preparation level.
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Question 1 of 5
1. Question
2 pointsब्रिटिश भारत में नील की खेती के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. अंग्रेज़ों द्वारा अपने लाभ के लिये पैदा कराई जाने वाली मुख्य फसलों में से एक थी जिसकी यूरोप में बहुत मांग थी।
2. नील की खेती के दो मुख्य तरीके थे- निज और रैयती।
3. नील की कटाई के बाद उन खेतों में धान की खेती नहीं की जा सकती थी।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?Correct
उत्तरः (d)
व्याख्याः उपर्युक्त तीनों कथन सही हैं।
अंग्रेज़ भारत में अपनी ज़रूरत के हिसाब से विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न फसलों की खेती करा रहे थे जिसमें नील और अफीम भी शामिल हैं। नील एक उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगने वाली फसल है। अन्य फसलों में कुछ निम्नलिखित हैं-
(i) बंगाल में पटसन
(ii) असम में चाय
(iii) संयुक्त प्रान्त में गन्ना
(iv) पंजाब में गेहूँ
(v) महाराष्ट्र व पंजाब में कपास
(vi) मद्रास में चावल
यूरोप के ‘वोड’ नामक पौधे की तुलना में ‘नील’ का पौधा बेहतर रंग देता था जिस कारण भारतीय नील की यूरोप में बहुत मांग थी। भारत के आन्ध्र प्रदेश के बुनकरों द्वारा बनाए गए कलमकारी छापे से लेकर ब्रिटेन के कलाकारों द्वारा बनाए जाने वाले विभिन्न फूल वाले छापों में नील का प्रयोग होता था।
नील की खेती के दो मुख्य तरीके थे- निज और रैयती। निज खेती व्यवस्था में बागान मालिक या तो खुद अपनी ज़मीन में या ज़मीन खरीदकर या भाड़े पर लेकर मज़दूरों द्वारा खेती कराते थे। रैयती व्यवस्था के तहत बागान मालिक गाँव के मुखियाओं या रैयतों के साथ एक अनुबंध करते थे। जो अनुबंध पर दस्तखत करता था उसे नील उगाने के लिये कम ब्याज पर कर्जा मिलता था। कर्ज़ लेने वाले को कम-से-कम 25 प्रतिशत ज़मीन पर नील उगाना होता था। बागान मालिक बीज और उपकरण देते थे जबकि बुआई और देखभाल काश्तकार करता था।
नील के साथ परेशानी यह थी कि उसकी जड़ें बहुत गहरी होती थीं और वह मिट्टी की सारी ताकत खींच लेती थी। इसलिये नील की कटाई के बाद वहाँ धान की खेती नहीं की जा सकती थी।Incorrect
उत्तरः (d)
व्याख्याः उपर्युक्त तीनों कथन सही हैं।
अंग्रेज़ भारत में अपनी ज़रूरत के हिसाब से विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न फसलों की खेती करा रहे थे जिसमें नील और अफीम भी शामिल हैं। नील एक उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगने वाली फसल है। अन्य फसलों में कुछ निम्नलिखित हैं-
(i) बंगाल में पटसन
(ii) असम में चाय
(iii) संयुक्त प्रान्त में गन्ना
(iv) पंजाब में गेहूँ
(v) महाराष्ट्र व पंजाब में कपास
(vi) मद्रास में चावल
यूरोप के ‘वोड’ नामक पौधे की तुलना में ‘नील’ का पौधा बेहतर रंग देता था जिस कारण भारतीय नील की यूरोप में बहुत मांग थी। भारत के आन्ध्र प्रदेश के बुनकरों द्वारा बनाए गए कलमकारी छापे से लेकर ब्रिटेन के कलाकारों द्वारा बनाए जाने वाले विभिन्न फूल वाले छापों में नील का प्रयोग होता था।
नील की खेती के दो मुख्य तरीके थे- निज और रैयती। निज खेती व्यवस्था में बागान मालिक या तो खुद अपनी ज़मीन में या ज़मीन खरीदकर या भाड़े पर लेकर मज़दूरों द्वारा खेती कराते थे। रैयती व्यवस्था के तहत बागान मालिक गाँव के मुखियाओं या रैयतों के साथ एक अनुबंध करते थे। जो अनुबंध पर दस्तखत करता था उसे नील उगाने के लिये कम ब्याज पर कर्जा मिलता था। कर्ज़ लेने वाले को कम-से-कम 25 प्रतिशत ज़मीन पर नील उगाना होता था। बागान मालिक बीज और उपकरण देते थे जबकि बुआई और देखभाल काश्तकार करता था।
नील के साथ परेशानी यह थी कि उसकी जड़ें बहुत गहरी होती थीं और वह मिट्टी की सारी ताकत खींच लेती थी। इसलिये नील की कटाई के बाद वहाँ धान की खेती नहीं की जा सकती थी। -
Question 2 of 5
2. Question
2 pointsब्रिटिश काल में बागान मालिकों तथा नील की खेती करने वाली रैयत के मध्य टकरावों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. बंगाल के किसानों ने नील की खेती से इनकार कर नील विद्रोह की शुरुआत की।
2. नील उत्पादन व्यवस्था की जाँच के लिये नील आयोग बना, जिसने बागान मालिकों को निर्दोष बताया।
3. चम्पारण में महात्मा गांधी ने नील बागान मालिकों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से कथन सही हैं?Correct
उत्तरः (b)
व्याख्याः
1859 में नील रैयतों को लगा कि बागान मालिकों के खिलाफ बगावत में उन्हें स्थानीय ज़मींदारों और मुखिया का भी समर्थन मिल सकता है अतः मार्च 1859 में बंगाल के हजारों रैयतों ने नील की खेती से इनकार कर नील विद्रोह शुरू कर दिया। अतः कथन 1 सही है।
विद्रोह के व्यापक होने पर नील उत्पादन व्यवस्था की जाँच करने के लिये एक नील आयोग बना जिसने बागान मालिकों को दोषी पाया, जोर-जबर्दस्ती के लिये उनकी आलोचना की। आयोग ने कहा कि नील की खेती रैयत के लिये फायदे का सौदा नहीं है। आयोग ने रैयतों से कहा कि वे मौजूदा अनुबंधों को पूरा करें लेकिन आगे वे चाहें तो नील की खेती बंद कर सकते हैं। अतः कथन 2 गलत है।
जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से लौटे तो बिहार के एक किसान ने उन्हें चम्पारण आकर नील किसानों की दुर्दशा को देखने का न्योता दिया। 1917 में महात्मा गांधी ने इस दौरे के बाद नील बागान मालिकों के खिलाफ चंपारण आंदोलन की शुरुआत की थी। अतः कथन 3 सही है।Incorrect
उत्तरः (b)
व्याख्याः
1859 में नील रैयतों को लगा कि बागान मालिकों के खिलाफ बगावत में उन्हें स्थानीय ज़मींदारों और मुखिया का भी समर्थन मिल सकता है अतः मार्च 1859 में बंगाल के हजारों रैयतों ने नील की खेती से इनकार कर नील विद्रोह शुरू कर दिया। अतः कथन 1 सही है।
विद्रोह के व्यापक होने पर नील उत्पादन व्यवस्था की जाँच करने के लिये एक नील आयोग बना जिसने बागान मालिकों को दोषी पाया, जोर-जबर्दस्ती के लिये उनकी आलोचना की। आयोग ने कहा कि नील की खेती रैयत के लिये फायदे का सौदा नहीं है। आयोग ने रैयतों से कहा कि वे मौजूदा अनुबंधों को पूरा करें लेकिन आगे वे चाहें तो नील की खेती बंद कर सकते हैं। अतः कथन 2 गलत है।
जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से लौटे तो बिहार के एक किसान ने उन्हें चम्पारण आकर नील किसानों की दुर्दशा को देखने का न्योता दिया। 1917 में महात्मा गांधी ने इस दौरे के बाद नील बागान मालिकों के खिलाफ चंपारण आंदोलन की शुरुआत की थी। अतः कथन 3 सही है। -
Question 3 of 5
3. Question
2 pointsब्रिटिश काल में झूम खेती के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. इसमें लोग जंगलों में छोटे भूखण्डों के पेड़ों के ऊपरी हिस्सों को काटकर तथा वहाँ की घास व झाड़ियों को जलाकर साफ करके खेती करते थे।
2. ऐसी खेती करने वाले किसान पूर्वोत्तर और मध्य भारत की पर्वतीय व जंगली पट्टियों में रहते थे।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
उत्तरः (c)
व्याख्याः उपर्युक्त दोनों कथन सही हैं।
झूम खेती घुमंतू खेती को कहा जाता है। इसमें लोग जंगलों में छोटे भूखण्डों के पेड़ों के ऊपरी हिस्सों को काटकर तथा वहीं की घास व झाड़ियों को जलाकर साफ कर देते थे। राख को ज़मीन पर फैला देते थे फिर उसकी खुदाई कर बीज बिखेर कर खेती करते थे। कुछ वर्षों तक (प्रायः दो या तीन वर्ष तक) जब तक मिट्टी में उर्वरता विद्यमान रहती है इस भूमि पर खेती की जाती है। इसके पश्चात् वे दूसरी जगह चले जाते थे। जहाँ से उन्होंने अभी फसल काटी थी वह जगह कई सालों तक परती (कुछ समय के लिये बिना खेती के छोड़ दी जाने वाली ज़मीन ताकि उसकी मिट्टी दोबारा उपजाऊ हो जाए) पड़ी रहती थी।
घुमंतू किसान सामान्यतः पूर्वोत्तर और मध्य भारत की पर्वतीय व जंगली पट्टियों में रहते थे। भारत के कुछ अन्य हिस्सों में भी घुमंतू किसान रहते हैं। गुजरात के बहुत सारे वन क्षेत्रों में यह अभी भी जारी है। गुजरात की भील जनजाति भी घुमंतू खेती करती है।Incorrect
उत्तरः (c)
व्याख्याः उपर्युक्त दोनों कथन सही हैं।
झूम खेती घुमंतू खेती को कहा जाता है। इसमें लोग जंगलों में छोटे भूखण्डों के पेड़ों के ऊपरी हिस्सों को काटकर तथा वहीं की घास व झाड़ियों को जलाकर साफ कर देते थे। राख को ज़मीन पर फैला देते थे फिर उसकी खुदाई कर बीज बिखेर कर खेती करते थे। कुछ वर्षों तक (प्रायः दो या तीन वर्ष तक) जब तक मिट्टी में उर्वरता विद्यमान रहती है इस भूमि पर खेती की जाती है। इसके पश्चात् वे दूसरी जगह चले जाते थे। जहाँ से उन्होंने अभी फसल काटी थी वह जगह कई सालों तक परती (कुछ समय के लिये बिना खेती के छोड़ दी जाने वाली ज़मीन ताकि उसकी मिट्टी दोबारा उपजाऊ हो जाए) पड़ी रहती थी।
घुमंतू किसान सामान्यतः पूर्वोत्तर और मध्य भारत की पर्वतीय व जंगली पट्टियों में रहते थे। भारत के कुछ अन्य हिस्सों में भी घुमंतू किसान रहते हैं। गुजरात के बहुत सारे वन क्षेत्रों में यह अभी भी जारी है। गुजरात की भील जनजाति भी घुमंतू खेती करती है। -
Question 4 of 5
4. Question
2 pointsसूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिये तथा नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये।
सूची-I(जनजाति) सूची-II(विशेषता)
A. गोंड और संथाल 1. एक जगह ठहरकर खेती करने वाले
B. खोंड और बैगा 2. शिकारी और संग्राहक
C. गद्दी और लबाड़िया 3. पशुपालक
D. भील और नागा 4. झूम खेती
कूटः
A B C DCorrect
उत्तरः (a)
व्याख्याः
उड़ीसा (वर्तमान ओडिशा) के जंगलों में रहने वाले खोंड तथा डोंगरिया एवं मध्य भारत के बैगा शिकारी और संग्राहक जनजातियाँ हैं। ब्रिटिश काल में स्थानीय बुनकरों और चमड़ा कारीगरों को कपड़े व चमड़े की रँगाई के लिये कुसुम और पलाश के फूलों की ज़रूरत होती थी तो वे इन्हीं संग्राहक जनजातियों से ही कहते थे।
गोंड (मध्य भारत), संथाल (झारखंड) जैसी अनेक जनजातियाँ एक जगह ठहरकर खेती करती थीं। बहुत सारे समुदायों में मुंडाओं की तरह ज़मीन पूरे कबीले की संपत्ति होती थी। ब्रिटिश अफसरों को एक जगह ठहरकर खेती करने वाली ऐसी जनजातियाँ शिकारी-संग्राहक या घुमंतू खेती करने वाली जनजातियों से अधिक सभ्य लगती थीं।
पंजाब के पहाड़ों में रहने वाले वन गुज्जर और आंध्र प्रदेश के लबाड़िया आदि समुदाय गाय-भैंस के झुंड पालते थे। कुल्लू (हिमाचल प्रदेश) के गद्दी समुदाय के लोग गड़रिये थे और कश्मीर के बकरवाल बकरियाँ पालते थे।
भील (गुजरात व अन्य कई क्षेत्रों में भी) और नागा (नागालैंड) जैसी कई जनजातियाँ घुमंतू कृषि करती थीं। इन्हें स्थायी रूप से बसाने के लिये अंग्रेज़ों ने ज़मीन को मापकर प्रत्येक व्यक्ति का हिस्सा और लगान तय किया। उन्होंने कुछ किसानों को भूस्वामी और दूसरों को पट्टेदार घोषित किया।Incorrect
उत्तरः (a)
व्याख्याः
उड़ीसा (वर्तमान ओडिशा) के जंगलों में रहने वाले खोंड तथा डोंगरिया एवं मध्य भारत के बैगा शिकारी और संग्राहक जनजातियाँ हैं। ब्रिटिश काल में स्थानीय बुनकरों और चमड़ा कारीगरों को कपड़े व चमड़े की रँगाई के लिये कुसुम और पलाश के फूलों की ज़रूरत होती थी तो वे इन्हीं संग्राहक जनजातियों से ही कहते थे।
गोंड (मध्य भारत), संथाल (झारखंड) जैसी अनेक जनजातियाँ एक जगह ठहरकर खेती करती थीं। बहुत सारे समुदायों में मुंडाओं की तरह ज़मीन पूरे कबीले की संपत्ति होती थी। ब्रिटिश अफसरों को एक जगह ठहरकर खेती करने वाली ऐसी जनजातियाँ शिकारी-संग्राहक या घुमंतू खेती करने वाली जनजातियों से अधिक सभ्य लगती थीं।
पंजाब के पहाड़ों में रहने वाले वन गुज्जर और आंध्र प्रदेश के लबाड़िया आदि समुदाय गाय-भैंस के झुंड पालते थे। कुल्लू (हिमाचल प्रदेश) के गद्दी समुदाय के लोग गड़रिये थे और कश्मीर के बकरवाल बकरियाँ पालते थे।
भील (गुजरात व अन्य कई क्षेत्रों में भी) और नागा (नागालैंड) जैसी कई जनजातियाँ घुमंतू कृषि करती थीं। इन्हें स्थायी रूप से बसाने के लिये अंग्रेज़ों ने ज़मीन को मापकर प्रत्येक व्यक्ति का हिस्सा और लगान तय किया। उन्होंने कुछ किसानों को भूस्वामी और दूसरों को पट्टेदार घोषित किया। -
Question 5 of 5
5. Question
2 pointsकिस प्रकार की कृषि में भूमि का उपयोग भोजन व चारे की फसलें उगाने और पशुपालन के लिये किया जाता है?
Correct
उत्तरः (D)
व्याख्याः मिश्रित कृषि में भूमि का उपयोग भोजन व चारे की फसलें उगाने और पशुपालन के लिये किया जाता है। यह यूरोप, पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, अर्जेंटीना, दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और दक्षिण अफ्रीका में प्रचलित है।Incorrect
उत्तरः (D)
व्याख्याः मिश्रित कृषि में भूमि का उपयोग भोजन व चारे की फसलें उगाने और पशुपालन के लिये किया जाता है। यह यूरोप, पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, अर्जेंटीना, दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और दक्षिण अफ्रीका में प्रचलित है।